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Advait Shree Mahamrityunjay Shakti Sadhana

महामृत्युंजय भगवान सदा शिव का वह परम दिव्य स्वरूप है जिसकी कृपा से न सिर्फ अकाल मृत्यु बल्कि समस्त प्रकार की गृह जनित, काल जनित व अनेकानेक प्रकार की व्याधियों से तत्क्षण मुक्ति संभव है । यूं तो भगवान महामृत्युंजय की कृपा का अपने जीवन में आवाहन करने की नाना प्रकार की कर्मकांडीय विधियां और पद्धतियां प्रचलित हैं पर जो सर्वोत्तम विधि है वह है भगवान महामृत्युंजय की अद्वैत साधना । इस परम दिव्य विधि को स्वयं शिवावतार आदि गुरु शंकराचार्य जी ने प्रतिपादित किया यह विधि है भगवान महामृत्युंजय को अपने भीतर ही जागृत कर उनकी साधनात्मक पद्धति से उपासना करने की । भगवान महामृत्युंजय की अद्वैत साधना हमें शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक स्वास्थ्य तो प्रदान करती ही है साथ ही साथ हमारे जीवन के हर एक पहलू में, हर एक आयाम में भगवान महामृत्युंजय की असीम कृपा और अनुकम्पा को भरने लग जाती है जिससे हमारा जीवन तमाम व्याधियों, कष्टों और परेशानियों से स्वतः ही बाहर आने लग जाता है ।

यह सर्वविदित है कि ये संपूर्ण सृष्टि पुरुष यानि भगवान शिव व प्रकृति यानि माता शक्ति पर ही आधारित है । शिव जहां शक्ति का आधार हैं तो वहीं बिना शक्ति के शिव भी शव समान हैं । यही कारण है कि वैदिक काल से ही तमाम ऋषि मुनियों ने पुरुष एवं प्रकृति दोनों की ही साधना की । आदि गुरु शंकराचार्य जी जिन्होंने सनातन को पुनः उसके मूल स्वरूप में स्थापित किया व योगी शिरोमणि बाबा मत्स्येंद्रनाथ, बाबा गोरक्षनाथ समेत सभी नवनाथों एवं तमाम परम सिद्धों ने न सिर्फ भगवान शिव की साधनाएं की बल्कि प्रकृति स्वरूप माता आदि शक्ति की भी साधना की जिससे वो उस पर ब्रह्म की संपूर्णता से साधना कर सकें ।

क्योंकि यह जो वर्तमान समय है यह एक युग परिवर्तन का समय है, यह वो क्षण है जब पृथ्वी की चेतना पुनः सतयुग की ओर अग्रसर हो रही है ऐसे में यह नितांत आवश्यक हो गया है कि ज्यादा से ज्यादा लोग उस दिव्य ज्ञान को, शिव–शक्ति की अद्वैत साधना को आत्मसात करें जिससे न सिर्फ यह संक्रमण काल सरलता एवं सहजता से पूर्ण हो सके बल्कि उनका जीवन भी संपूर्णता को प्राप्त कर सके जिसके लिए उन्होंने यह मानव शरीर धारण किया है ।

हजारों वर्षों बाद उज्जैन में होने जा रही इस परम दिव्य “अद्वैत महामृत्युंजय शक्ति साधना” में माइंड पावर रिसर्च एवं ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट आप सभी का हार्दिक स्वागत करता है ताकि इस दिव्य साधना का बीज अपने भीतर रोप कर आप भी उस दिव्यता एवं संपूर्णता का अनुभव कर अपने जीवन को सफल, सुफल और निर्मल बना सकें ताकि आपका इस लोक का जीवन तो सुखमय हो ही परलोक भी सुखमय हो सके ।